श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “जैसे हैं हम, दिखते कब हैं…”)

☆  तन्मय साहित्य  #128 ☆

☆ कविता –  जैसे हैं हम, दिखते कब हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

हम अपने को, लिखते कब हैं

जैसे हैं हम, दिखते कब हैं!

 

जो मन आया लिखा पराया

तुम्हें पसन्द, गीत वह गाया

रचा वही, जिससे मतलब है

जैसे हैं हम…..

 

आदर्शो की, बातें कर ली

ढेर पोथियाँ, हमनें भर ली

विविध विधा,अद्भुत करतब है

जैसे हैं हम…..

 

जिससे कलम पकड़ना सीखा

अब अपने सम्मुख वह फीका

ज्ञान स्वयं का, बहुत विशद है

जैसे हैं हम…..

 

भाव-भंगिमाओं, अभिनय में

स्वमुख उच्चरित निज परिचय में

सबसे ऊँचा, अपना कद है

जैसे हैं हम…..

 

जलसों में, हाजरी जरूरी

रखते सब से, निश्चित दूरी

हर संस्था में, अपने पद हैं

जैसे हैं हम, दिखते कब हैं

हम अपने को लिखते कब हैं।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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