श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – ब्लैक होल
कैसे ज़ब्त कर लेते हो
इतने दुख, इतने विषाद
अपने भीतर..?
विज्ञान कहता है-
पदार्थ का विस्थापन
अधिक से कम,
सघन से विरल
की ओर होता है,
ज़माने का दुख
आता है, समा जाता है,
मेरा भीतर इसका
अभ्यस्त हो चला है,
सारा रिक्त शनैः-शनैः
ब्लैक होल हो चला है!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
विचारशील प्रक्रिया!
ब्लेक होल की स्थिति जब आती है तो मनुष्य वास्तव में सहन शक्ति की सारी सीमाओं से ऊपर उठ जाता है। गहन अर्थपूर्ण रचना