श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम महज़ मूक दर्शक हो …”।)
ग़ज़ल # 28 – “तुम महज़ मूक दर्शक हो …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
तारीफ़ों के पुल तले मतलब की नदी बहती है,
मैं नहीं कहता पकी उम्र की समझ कहती है।
तेज़ी से बढ़ेगा विश्वगुरु का दावेदार यह देश,
धर्म की नशीली जनता ख़्यालों में रहती है।
चर्च-क़िले मीनार-मेहराब मंदिर-दरबार सजे हैं,
पोप-किंग मुल्ला-मेहरबान की ज़ेब भरती है।
राजनीति और धर्म गलबैयां डाल कर चलते हैं,
इतिहास की पुरानी तस्वीर यही सच कहती है।
दिमाग़ का ज़ायक़ा बदला लच्छेदार लहजों ने,
कुतर्क समझो जुबाँ पर नफ़ीस पैरहन रहती है।
आज नहीं कल सुधर जाएँगे हमारे कर्णधार,
मजबूर तर्क की विवश लाचारी यह कहती है।
नेता का दिमाग़ पहुँच रहा सातवें आसमान पर,
नहीं कोई विकल्प इसीलिए महँगाई सहती है।
तुम महज़ मूक दर्शक हो हुजूम में ‘आतिश’,
क़ीमत समझदार वोट की महज़ एक रहती है।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈