॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (56 – 60) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

 

सक्षम हो भी विजय का नहीं किया अभियान।

जहां रोध को हटा, पथ करना था आसान।।56।।

 

अर्थ-धर्म औं’ काम थे पारस्परिक सहाय।

तीनों उसके राज्य में करते थे समवाय।।57।।

 

निबल मित्र कम काम का, प्रबल भय का आधार।

इससे मध्य से मित्रता की पाने सहकार।।58।।

 

देश-काल-गति शत्रु की देख, भविष्य विचार।

योग्य प्रशासक के सदृश थे उसके व्यवहार।।59।।

 

कोश बढ़ाया प्रजाहित, न कि लोभ के भाव।

होते भिन्न जलद-शरद मेघों के बर्ताव।।60।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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