॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (61 – 65) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -17
छुपा स्वतः की निर्बलता किया शत्रु पर बार।
नष्ट किया अनुचितों को, रख खुद शुभ व्यापार।।61।।
कुश संवर्धित सैन्य बल को देते सम्मान।
पाला उस बल को सदा, निज की देह समान।।62।।
नागमणि सम शक्ति नय हर न सके अरि कोई।
बल्कि उसी ने खींच ली चुम्बक सी सब गोई।।63।।
नदियों में वापी सदृश, वन में बाग समान।
पर्वत पै घर के सदृश, साथ थे निडर महान।।64।।
तप की रक्षा विध्न से, तस्कर से धन-धान्य।
कर उसने पाया स्वतः आश्रम से भी षटांश।।65।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈