श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# उसका दुःख #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 81 ☆

☆ # उसका दुःख # ☆ 

वो जब जीवन में

पहली बार मिली

गले लगी

कांधे पर सर रखकर

सुबक रही थी

मैंने सहलाया

बालों पर हाथ फेरा

आंसू पोंछे

अधरों का बोसा लिया

और पूछा-

क्या हुआ ?

वो आँखें चुराते हुए

चुप रही

मुझसे अलग हुई

और

किचन में चली गई

इतने वर्षों बाद भी

कभी कभी

वो उदास सी

मेरे कांधे पर सर रखकर

धीरे धीरे सुबकती है

मैं उसे सहलाता हूँ

गले लगाता हूँ

आँसू पोंछता हूँ

पीठ थपथपाता हूँ

ढाढस बंधाता हूँ

और

पूछता हूँ –

कहो – क्या हुआ ?

वो चुप रहती है

बस इतना कहती है

कुछ नहीं

मैं उसका मन

पहले

और आज भी

समझ नहीं पाया हूँ

 

शायद उसे पहले

माँ-बाप,

भाई-बहन से

बिछड़ने का गम था

और आज

सभी बच्चे

अपने अपने संसार में

सिमट गये,

वो फिर अकेली रह गई

मेरे साथ रहते हुए भी…?

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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