श्री विजय कुमार
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी की एक विचारणीय लघुकथा “दो पैग रोज“।)
☆ लघुकथा – दो पैग रोज ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका) ☆
“यार, तू सारा दिन रोबोट की तरह काम करता रहता है, थकता नहीं क्या? कभी तेरे चेहरे पर थकावट नहीं देखी, चिड़चिड़ाहट नहीं देखी, घबराहट भी नहीं देखी, बस मुस्कुराहट ही मुस्कुराहट देखी है। ओए, इसका राज तो बता यार?” संदीप ने सुरेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“बस यही राज है- मुस्कुराहट”, सुरेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं किसी भी काम को बोझ मानकर नहीं करता। अपना उसूल है- काम तो करना ही है, चाहे रो कर करो या हंस कर, तो हंस कर क्यों ना किया जाए। जैसे दूसरे लोग मोबाइल पर या कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं, वैसे ही मैं अपने हर काम को एक खेल की तरह लेता हूं, और उसे पूरे मनोयोग से करने की कोशिश करता हूं। तुम्हें सुनकर हैरानी होगी कि सौ प्रतिशत नहीं, तो नब्बे-पचानवे प्रतिशत कार्यों में मैं सफल रहता हूं। तो खुश तो रहूंगा ही, और खुश रहूंगा तो मुस्कुराहट भी अपने आप आएगी चेहरे पर…।”
“फिर भी यार, कभी तो बंदा थकता ही है। पर तुम तो हमेशा ऊर्जावान ही रहते हो। कुछ तो गड़बड़ है?” संदीप ने तह तक जाने की कोशिश की।
सुरेश फिर मुस्कुरा दिया, ‘हां है- दो पैग रोज।”
“हां, अब आए न लाइन पर…”, संदीप को जैसे मनचाहा उत्तर मिल गया हो, “मैं कह रहा था न कि कुछ तो है।”
“वह वाले पैग नहीं मियां, जो तुम सोच रहे हो”, सुरेश ने हंसते हुए कहा, “वह तो तुम भी लेते हो, फिर एनर्जी क्यों नहीं आती?”
“फिर? फिर कौन से पैग?” संदीप चकरा गया।
“देखो, तुम दो पैग रोज रात को लगाते हो, मैं एक सुबह और एक शाम को पीता हूं। पर जितने में तुम्हारा एक पैग बनता है, उसके आधे में मेरे दो पैग बन जाते हैं। फिर भी एनर्जी तुमसे दोगुनी।” सुरेश ने कहा।
इस पर संदीप और उलझ गया, ‘ऐसे कौन से पैग हैं भई? कहीं देसी ठर्रा तो नहीं? पर तुम्हें तो कभी पीते हुए भी नहीं देखा, न किसी से सुना है कभी?”
“हां, मैं दारू नहीं पीता, बल्कि वैद्य की सलाह से आयुर्वेदिक टॉनिक लेता हूं, जिससे इतना उर्जावान, चुस्त और जवान रहता हूं। मेरी अपनी सोच है- बीमार होकर दवाइयां खाने से अच्छा है, अच्छी खुराक खा कर और स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक पीकर स्वस्थ रहना। क्यों सही है न…।”
संदीप उसकी बात का अवलोकन कर रहा था…।
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© श्री विजय कुमार
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