श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# जुहू चौपाटी पर एक शाम #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 83 ☆
☆ # जुहू चौपाटी पर एक शाम # ☆
(मुंबई दर्शन में जुहू चौपाटी परजो देखा उसको शब्दों में पिरोया है…)
जुहू की एक शाम
आप सबके नाम
शाम धीरे धीरे ढल रही थी
किनारे किनारे लाइटें
धीमें धीमें जल रही थी
ठंडी ठंडी हवा बह रही थी
आलिंगन बध्द युगलों को
कुछ कह रही थी
आ रहे थे रेले के रेले
लग रहे थे मेले के मेले
सज रही थी चौपाटी
सजे हुए थे ठेले
समंदर में ऊंची ऊंची
उठ रही थी लहरें
सिहर उठे थे लोग
जो थे किनारे पर ठहरे
शुभ्र शुभ्र लहरें
पांवों को चूम रही थी
छोटे, बड़े, तरूनाई
मस्ती में झूम रहीं थी
रेत के छोटे छोटे कण
पांव की उंगलियों में सज रहे थे
बिछिया बनकर
धीमे धीमे चुभ रहे थे
रात धीरे धीरे आगे सरक रही थी
पागल पवन मदहोश हो
बहक रही थी
चांद तारे अंबर में
चमक रहे थे
भीगे भीगे वस्त्रों में
यौवन आग से दहक रहे थे
हम भी अपनी पत्नी के साथ
लेकर हाथ में हाथ
हमको भी लहरों के बीच
होना पड़ा खड़ा
पत्नी को खुश करने
लहरों से भीगना पड़ा
हम किनारे पर आकर बैठ गए
किराए की चटाई पर लेट गए
लहरों ने हमको
छेड़ना नहीं छोड़ा
यहां पर भी
भिंगोना नहीं छोड़ा
हम पुरानी यादों में खो गये
जवानी के दिन हमको
याद आ गये
विमान की गड़गड़ाहट ने
हमारी शांति लूटी
हमारी तंद्रा टूटी
हमने पाव भाजी खाई
आसमान के चांद को दी बधाई
धीरे धीरे ढल रही थी
मदहोश रात
बादलों में छुपी हुई थी
तारों की बारात
लहरें अभी भी
आ रही थी, जा रही थी
अपने प्रियतम समुद्र में
समा रहीं थी
और
हम दोनों
हाथों में हाथ लिए
निश:ब्द बिना कुछ कहे
आंखों में आंखें डालें
जज़्बातों को
संभाले संभाले
चल रहे थे
अपने अपने
ठिकाने की तरफ
धीरे धीरे ——!
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈