॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (6 – 10) ॥ ☆

सर्ग-19

राजा था रसरंग में लीन ऐसा प्रजा दर्शनों को तरसने लगी थी।

रहा नृप का अंतः पुरों में ही डेरा, खुशी तरूणियों की बरसने लगी थी।।6।।

 

कभी मंत्रियों की विनय पर प्रजा पर अनुग्रह किया तो चरण भर दिखाये।

जो लटकाये गये खिड़की से सिर्फ दो क्षण, कोई कभी मुख छवि नहीं देख पाये।।7।।

 

नखकांति कोमल, जो रवि की किरण से खिले कमल की सी थी ऐसे चरण को।

विनत नमन करके ही सब राजदरबारी जाते थे नित अपनी सेवा-शरण हो।।8।।

 

यौवन से कामिनि के उन्नत उरोजों के संघात से क्षुबध जल-चल-कमल युक्त।

जल से ढकी सीढ़ियों के भवन मे रसिक उसने की काम क्रीड़ा हो उन्मुक्त।।9।।

 

वहां रमणियों के जलाभिषेक से धुले प्राकृत नयन, अधरों ने उसके मन को।

मोहित किया अधिक क्योंकि नहीं था कोई आवरण ढंके सुन्दर वदन को।।10।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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