श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 35 – मनोज के दोहे ☆
(ग्रीष्म, चिरैया, गौरैया, लू, तपन)
ग्रीष्म-तप रहा मार्च से, कमर कसे है जून।
जब आएँगे नव तपा, तपन बढ़ेगी दून।।
दूँगा सबको भून।।
पतझर में तरु झर गए, ग्रीष्म मचाए शोर ।
उड़ीं चिरैया देखकर, कल को यहाँ न भोर।।
गौरैया दिखती नहीं, ममता देखे राह।
दाना रोज बिखेरती, रही अधूरी चाह।।
भरी दुपहरी में लगे, लू की गरम थपेड़।
कर्मवीर अब कृषक भी, लगते सभी अधेड़।।
सूरज की अब तपन का, दिखा रौद्र अवतार।
सूख रहे सरवर कुआँ, सबको चढ़ा बुखार।।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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