श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता – हथियार बना गर्व… ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 161 ☆

? कविता – हथियार बना गर्व… ?

हर तरफ

गर्व बिखरा पड़ा है

लाल नीला पीला हरा गर्व

लाउड गर्व ,

ताजा गर्व ,  

पुरखों वाला पुराना गर्व

बेदाग गर्व

धब्बेदार गर्व

असरदार गर्व

फरमे बरदार गर्व

किताबों में बंद ,

उजागर गर्व

इमारतों में कैद

झाड़ फानूसो पर लटका गर्व

फांसी के तख्ते पर झूलता गर्व,

वो याद करता

वो भूलता गर्व

हथियार बना गर्व

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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