॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (51 – 57) ॥ ☆

सर्ग-19

 

तपन से उजड़ता हुआ जैसे सर हो, या बुझते हुये दीप की ज्यों प्रभा हो।।51।।

प्रजा हुई शंकित कि नृप हुये हैं रूग्ण पर मंत्रियों ने सदा सब छुपाया।

 

पुत्र प्राप्ति हित जप-अनुष्ठान-रत है, इसी से है दुर्बल, यही नित बताया।।52।।

कई रमणियों का होकर सखा भी अग्निवर्ण पितृऋण से नहीं उबर पाया।

 

क्रमशः सिमटते बुझा प्राण-दीपक, क्षय वैद्ययत्नों को न लाँघ पाया।।53।।     

अन्त्येष्टि करने पुरोहितों को ले साथ सचिवों ने गृहोद्यान में ही जलाया।

 

हुआ क्या था राजा को जिससे गुजर गये,

किसी की समझ में सही कुछ न आया।।54।।

 

कर प्रजा प्रमुखों को एकत्र सचिवों ने उस पट्टरानी को गद्दी बिठाया।

जिसके उदर में था पल रहा शुभ गर्भ नृप अग्निवर्ण का जो बचने न पाया।।55।।

 

आई विपदा के महाशोक से उष्ण जल नेत्र से ढल जिसे तप्त कर भये।

उसी गर्भ को स्वर्णकलशों से झर जल अभिषेक विधि से सुसंतृप्त कर गये।।56।।

 

सावन में बोये गये थोड़े बीजों की रखती है धरती स्वयं ज्यों संजोकर,

त्यों सिंहासनारूढ़ रानी प्रसव की प्रतीक्षा में रत रही शासन चलाकर।

अमात्यों के सहयोग से उसने अपने उस राज्य को आगे ढंग से चलाया।

हुआ एक युग अंत ‘अग्निवर्ण’ के साथ जो अनेकों के कभी मन न भाया।।57।।

इति रघुवंशम्

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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