श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – नदी का उद्गम।)
☆ कविता – नदी का उद्गम ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
बीमार बावरी से डाॅक्टर ने कहा-
जीभ दिखाओ
बावरी के फीके होंठ मुस्कुराए-
जीभ तो थूक है
स्त्री अपना मन दिखाती है
और मन कोई देखता नहीं
बावरी की आँखें नम हो गईं
डाॅक्टर पत्थर हो गया
उसे लगा-
हर नदी का उद्गम स्त्री का मन है
और हर नदी को अपना रास्ता
पत्थरों के बीच से बनाना होता है ।
(विक्रम मुसाफ़िर के उपन्यास श्रीवन से प्रेरित)
© हरभगवान चावला