श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – पर्यावरण विमर्श – (5) – प्रगति
पेड़ पर लगे फल
खाता था आदमी,
फूलों का फिर
इस्तेमाल करने लगा,
अब उसकी दृष्टि
टहनियों पर थी,
शनैः-शनैः
जड़ समेत
समूचा पेड़ निगलने लगा आदमी…,
आदमी ने पाट दिए जंगल,
शहर खड़े किए,
आदिम जड़ता से बाहर निकल,
प्रगति के नए आयाम स्थापित किए…..,
लेकिन बावजूद सारे विकास के-
कमबख्त भूख उसे अब भी लगती थी,
फल-फूल, अनाज पाने के लिए,
भूख मिटाने के लिए,
पेड़ उगाने लगा आदमी…,
तब,
मशीन से दस मिनट में
निगला जानेवाला पेड़,
उगने-जमने, पलने-बढ़ने में
दस बरस लेता है,
समझ गया आदमी…..,
अब,
सोचकर हताश है आदमी,
अगले दस बरस क्या खायेगा;
पेड़ का अभाव आदमी को
विकास समेत निगल जायेगा..,
सचमुच हताश है
विकसित, बेचारा आदमी….!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
हताशा क्या खाएगा अगले दस साल बेचारा विकसित आदमी त्रासदी के दौर से गुजरे
क्रमश: –
गुजरेगा हल ढूँढने के लिए विवश होगा ….विचारणीय 💐