श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 39 – मनोज के दोहे

ताल हुए बेताल अब, नीर गया है सूख।

सूरज की गर्मी विकट, उजड़ रहे हैं रूख।।

 

नदी हुई अब बावली, पकड़ी सकरी राह।

सूना तट यह देखता, जीवन की फिर चाह।।

 

पोखर दिखते घाव से, तड़प रहे हैं जीव।

उपचारों के नाम से, खड़ी कर रहे नीव।।

 

झील हुई ओझल अभी, नाव सो रही रेत।

तरबूजे सब्जी उगीं, झील हो गई  खेत।।

 

हरियाली गुम हो रही, सूरज करता दाह।

प्यासे झरने हैं खड़े, दर्शक भूले राह।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments