श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है पितृ दिवस पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# हाथ की लकीरें #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 89 ☆

☆ # हाथ की लकीरें # ☆ 

तू हाथ की लकीरों में

क्या ढूंढ रहा है ?

अपनी किस्मत या

ऊपरवाले की रहमत ?

उसने तो तुझे

सब कुछ दिया है

जब तेरा सृजन किया है

 

सुंदर आकर्षक तन

मोहित करनेवाला मन

प्रेम, दया, करूणा, धन

खुशी और अपनापन

फिर तू क्यों उलझा है

लकीरों में ?

ग्रहों, तारों के फेरों में

कर्मकाण्डो के ढेरों में

निम्बू, मिर्ची बांटते फकीरों में

 

हार ओर जीत

हाथ का मैल है

यह सब सोच का

खेल है

मान लो तो हार

ठान लो तो जीत

ज़िंदगी, तो दो

पहियों की रेल है

मेहनत से बदलेंगे

भाग्य तेरे

शीर्ष पर पहुंचायेंगी

यहीं लकीरें

बगैर हाथ के भी

नसीब होते हैं

खुद पर भरोसा कर

भाई मेरे/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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