प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “विश्व में भगवान…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 90 ☆ ’’विश्व में भगवान…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
एक तो जागृत प्रकृति है, दूसरा इन्सान है
बुद्धि और विवेक का जिसको मिला वरदान है।
निरन्तर चिन्तन मनन से कर्म से विज्ञान से
नव सृजन के प्रति सजग नित मनुज ही गतिवान है।
भूमि-जल-आकाश में जो भी जहाँ कुछ दिख रहा
वह सभी या तो प्रकृति या मनुज का निर्माण है।
प्रकृति पर भी पा विजय इन्सान आगे बढ़ गया
और आगे कर रहा नित नये अनुसंधान है।
चल रहा उसकी प्रगति का बिन रूकावट सिलसिला
अपरिमित ब्रम्हाण्ड में उड़ रहा उसका यान है।
खोज जारी है रहस्यों की तथा भगवान की
अमित भौतिक आध्यात्मिक विजय का अभियान है।
आदमी से बड़ा कोई नहीं दिखता विश्व में
वास्तव में आदमी ही इस जगत का प्राण है।
प्रकृति औ’ परमात्मा ही हैं नियंता विश्व के
साथ ही पर मुझे लगता तीसरा इन्सान है।
चेतना परिव्याप्र है जो मानवी मस्तिष्क में
शायद यह ही चेतना इस विश्व में भगवान है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈