श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। श्री सुजित जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत प्रत्येक गुरुवार को आप पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता प्रेम रेष …. ।)
☆ सुजित साहित्य #2 ☆
☆ प्रेम रेष …. ☆
उधाणलेला सागर
मन येतं शहारून
तुझ्या प्रेमात ग सखे
कसं जातं मोहरून
खळाळत येती लाटा
फुटतात विरतात
शंख शिंपले किनारी
आठवण ठेवतात
वाट पाहून थकतो
निघतो मी परतीला
लाटा रेगांळत राही
आठवांच्या सोबतीला
पुसती पाऊल खूणा
दिसे फक्त ओली रेघ
कितीही पुसली तरी
उमटते प्रेम रेष..!!
© सुजित कदम, पुणे