श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – ‘है’ और ‘था’ (चार शब्दचित्र)
[1]
‘है’ और ‘था’
देखें तो
दोनों के बीच
केवल एक पल थमा है,
‘है’ और ‘था’
सोचें तो एक पल में
जीवन और मृत्यु का
अंतर कटा है।
(रात्रि 3:22 बजे 22 मई 2019)
[2]
‘है’ और ‘था’
देखें तो
सम्बंधों से साँसों तक
अहम खड़ा है,
‘है’ और ‘था’
सोचें तो
मुनादी करते
समय सबसे बड़ा है।
(रात्रि 3:34 बजे 22 मई 2019)
[3]
‘है’ और ‘था’
देखें तो
बंद मुट्ठी में
अनादि-अनंत की
संपदा गड़ी है,
‘है’ और ‘था’
सोचें तो
मुट्ठी खुलने पर
बस इक पल की
संपदा मिली है।
(रात्रि 3:55 बजे 22 मई 2019)
[4]
‘है’ और ‘था’
वर्तमान इक दिन
अतीत हो जाएगा,
अतीत रूप बदल कर
फिर लौट आएगा,
बहुरूपिया समय
नाना स्वांग रचता है
‘है’ और ‘था’ बन कर
मनुष्य को ठगता है।
(प्रातः 4: 04 बजे 23 मई 2019)
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
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