डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना कौस्तुभ जी की एक विचारणीय लघुकथा भरोसा) 

 ☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – भरोसा ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆ 

मई की कड़क धूप में उसने दरवाजा खटखटाया बोली, उसके परिवार में कोई नहीं है उसे काम चाहिए। मैंने अपनी होशियारी दिखाते हुए उस सीधी साधी महिला का फोन नंबर लेकर उसे टाल दिया।

आखिरकार एक दिन तबीयत खराब होने पर मैंने उसे बुला ही लिया। आते ही ज्योति ने  हमारे घर के साथ दिलों में भी जगह बना ली थी। अब हम सब पूरी तरह से उस पर निर्भर हो गए थे उस पर पूरा भरोसा करने लगे थे।

घर, बाजार, बैंक के काम वह बड़ी फुर्ती से निपटा देती थी।

एक दिन काम से बाहर निकली 4/5 घंटे हो गए वापस ही नहीं आई। मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। हाय आज तो लॉकर में जेवर रखने भेजा था।

तभी पुलिस की जीप की आवाज मेरे शक को यकीन में  बदल ही रही थी कि इंस्पेक्टर ने कहा …”हमारी जीप से टकराकर यह बेहोश हो गई थी। होश आने पर इन्हें छोड़ने आए हैं।”

ज्योति मुस्कुरा कर बोली..” दीदी घबराओ नहीं बैंक का काम होने के बाद ही टकराई थी।”

मैंने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया।

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

मो 9479774486

जबलपुर मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन संदेश