श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय नवगीत “लगा चोंच में खून…”।)
☆ तन्मय साहित्य # 148 ☆
☆ नवगीत – लगा चोंच में खून… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
वृक्षों की फुनगी पर बैठे झूम रहे हैं
वे कलियों को निर्ममता से चूम रहे हैं।
लगा चोंच में खून
इसे अब कैसे पोंछें
सौ-सौ बल माथे पर
मिले न हल जो सोचें,
रक्त सने जो दाग
बता कुंकूम रहे हैं
वे कलियों को …..
बाहर से गंभीर
सशंकित हैं भीतर में
जाल बिछा दे कब कोई
है इसके डर में,
बदल बदल कर
डाल-डाल अब घूम रहे हैं
वे कलियों को …..
झुरमुट के उस पार
उपजते प्रश्न रोज हैं
मची जंग अर्थों पर
सँग में महाभोज है,
बौने शब्द नपुंसक हल
बस गूँज रहे हैं
वे कलियों को …..
बहे हवा की धाराएँ
भी अजब गजब है
है अनंत विस्तार
अलक्षित सा जो नभ है,
अर्थशास्त्र में अपने
कल को ढूँढ रहे हैं
वे कलियों को निर्ममता
से चूम रहे हैं।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈