श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा – “एकलव्य और अंगूठा”)  

☆ लघुकथा # 154 ☆ “एकलव्य और अंगूठा” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

घर के आंगन में लगे अमरूद के पेड़ के नीचे बैठे बड़े पंडित जी चाय पी रहे हैं ,ऊपर कोयल बोल रही है , शिक्षक दिवस के कारण शिष्यों का आना जाना सुबह से लगा है। गुरु जी आज स्कूल नहीं गये, सुबह से शिष्य गुरु वंदना करने आते हैं और कुछ कुछ गुरु जी को चढ़ा जाते हैं, कुछ ने मोबाइल दिया, कुछ ने लिफाफा। एक जमींदार शिष्य खाली हाथ आया था तो गुरु जी उसका अंगूठा देखने लगे, शिष्य ने मजाक में कहा कि जल्दबाजी में गुरु जी कुछ ला नहीं पाया, एक काम कीजिए ज्यादा है तो ये मेरा अंगूठा ले लीजिए। शिष्य जमींदार की बात सुनकर गुरु जी अपने पीए से बोले कि इनका अंगूठा स्टांपित दानपत्र पर लगवा लीजिए, पांच एकड़ जमीन बहुत है। शिष्य ने लघुशंका का बहाना बनाकर दौड़ लगा दी और एकलव्य बनने से बच गया।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Subedarpandey

तथ्यांकित करारा व्यंग बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीय श्री