श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 52 – मनोज के दोहे….  

1 अंजन

आँखों में अंजन लगा, माँ ने किया दुलार।

कोई नजर न लग सके, किया मातु उपचार।।

 

2 आनन

आनन-फानन चल दिए, पूँछ न पाए हाल।

सीमा पर वापस गए, चूमा माँ का भाल।।

 

आनन(चेहरा)

आनन पढ़ना यदि सभी, लेते मिलकर सीख।

दश-आनन को द्वार से, कभी न मिलती भीख।।

 

गज-आनन की वंदना, करती बुद्धि विकास ।

दुख की हटती पोटली, बिखरे ज्ञान उजास ।।

 

3 आमंत्रण

आमंत्रण है आपको, खुला हुआ है द्वार।

प्रेम पत्रिका है प्रिये, करता हूँ मनुहार।।

 

4 आँचल

माँ का आँचल है सुखद, मिले सदा ही छाँव।

कष्टों से जब भी घिरा, मिली गोद में ठाँव।।

 

5 अलकें

घुँघराली अलकें लटक, चूमें अधर कपोल।

कान्हा खड़े निहारते, झूल रहीं हिंडोल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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