श्री सदानंद आंबेकर
(श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। भारतीय स्टेट बैंक से स्व-सेवानिवृत्ति के पश्चात गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से निरंतर योगदान के लिए आपका समर्पण स्तुत्य है। आज प्रस्तुत है श्री सदानंद जी की पितृ दिवस की समाप्ति एवं नवरात्र के प्रारम्भ में समसामयिक विषय पर आधारित एक विशेष कथा “पितृपक्ष”। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन।)
☆ कथा कहानी ☆पितृपक्ष ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆
इस धरा धाम पर पिछले ही सप्ताह, वर्ष में एक बार आने वाला पितृपक्ष नाम का कालखंड समाप्त हुआ है। इसके उपरांत अब नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है।
इसी पृथ्वी पर भारतवर्ष नामक एक देश के एक नगर के बाग में कुछ पशु एकत्र हुये थे। श्यामबरन कौए ने तेजू श्वान की ओर देखकर कहा पिछले पखवाड़े तो हमारी मौज रही। यूं वर्ष भर लोग हमें अशुभ समझ दुरदुराते रहते हैं पर उन दिनों खोज-खोज कर बुलाते और खूब खाना खिला रहे थे। श्वान ने आलस से उनींदी अपनी आंखें आधी खोलकर बात के समर्थन में हूं जैसा कुछ स्वर निकाला। पास ही शहर से चरने आई श्यामा गाय ने भी पेट को पूंछ से सहलाते हुये कहा- पूरे बरस भर तो कूडा करकट और सड़ा हुआ, बासी खाना मिलता है पर पिछले पंद्रह दिनों में तो पूडी खीर, हलुआ और न जाने क्या क्या खाकर अघा गये। पेट भरा होता तो भी मनुष्य पुचकार कर मुंह के आगे खाना रख देता था। नीचे जमीन पर चींटियों का झुंड जा रहा था, उनमें से कुछ ने पूरा जोर लगाकर अपनी आवाज को यथासंभव तेज बना कर खूब खाना मिलने की बात का समर्थन किया साथ ही यह बताना नहीं भूली कि आगे ठंड के मौसम तक के लिये खूब सामान बिलों में एकत्र कर रख लिया है।
”सबने एक स्वर में कहा पितृपक्ष बड़ा अच्छा होता है।”
नगर के राधाकृष्ण देवालय में आस-पास के सभी पंडित बैठकर बतिया रहे हैं। पंडित रामसहाय चौबे जी ने अपनी चोटी को गांठ लगाते हुये कहा- कुछ भी कहें, इस पितृपक्ष में सबकी खूब कमाई भई। नगद रुपया, बरतन, छाता, चप्पलें, धोती, चादरें तो खूब आईं , भोजन परसाद भी पंदरह दिन खूब मिला। पंडताइन भी खूब आराम में रही। साल भर अब कुछ सामान खरीदने की आवश्यकता नहीं।
”सबने एक स्वर में कहा पितृपक्ष बड़ा अच्छा होता है।”
मंदिर के सामने के बाजार में नवरात्रि पर खूब भीड चल रही थी, उसमें कुछ दुकानदार पिछले दिनों हुई फूल, अगरबत्ती, परसाद, आदि की बिक्री से खुश होकर आपस में कह रहे थे कि पखवाडे़ भर के धंधे के बाद अब नवरात्रि में भी खूब गाहकी चल रही है।
”सबने एक स्वर में कहा पितृपक्ष बड़ा अच्छा होता है।”
इन सबसे अनंत अंतर पर दूर स्वर्ग में बैठे हुये भारत देश के दिवंगत पितर आराम से बैठ कर विगत पितृपक्ष को स्मरण कर खुश हो रहे थे।
समय पर इलाज न मिलने से मृत हुये बाल मंदिर के शिक्षक होरीलाल जी ने कहा- वाह, इस बार मेरी तिथि पर मेरे डाॅक्टर बेटे ने मेरी स्मृति में निःशुल्क चिकित्सा जांच शिविर लगाया था।
जीवन भर अंधेरी टुटही सी कोठरी में रहे श्री दीनानाथ जी ने चहक कर बताया कि इस पितृ सप्तमी को उनके पुत्र ने अपनी नई सुविधायुक्त विलासगृह परियोजना का आरंभ किया और उस कालोनी का नाम अपनी माता के नाम पर रखा है। वाह मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है।
अपनी सेवानिवृत्ति के उपरांत अंतिम श्वास तक वृद्धाश्रम में रहे भूतपूर्व सरकारी अधिकारी रविराज जी ने बडे़ संतोष से सबको सूचना दी कि मैंने यहां से देखा कि इस बार मेरी श्राद्ध तिथि पर मेरे बेटे ने विदेश से आकर हमारे नगर के अनाथ आश्रम को ढेर सा धन दान में दिया है। भगवान उसे खूब खुश रखें।
इस सभा में सबसे अंत में विराजे दुबले पतले वृद्ध ने बड़े संतोष से अपनी बात चलाई कि मेरी द्वादशी की तिथि है और उस दिन मेरे दोनों पुत्रों ने बारह बामनों को बुला कर अनेक पकवान बना कर भोजन करा कर संतुष्ट किया। उनमें मैेने कई पकवान तो जीवन भर देखे तक नहीं थे। वाह वाह कितने उदार हैं मेरे बेटे।
”सबने एक स्वर में कहा पितृपक्ष बड़ा अच्छा होता है।”
ऊपर आकाश में बैठा ईश्वर यह सब देख सुनकर बस मुस्कुरा रहा था।
© सदानंद आंबेकर
भोपाल, मध्यप्रदेश