डाॅ. निशिकांत श्रोत्री
इंद्रधनुष्य
☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 2 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆
(रचैता : रामकृष्ण —-वृत्त : दुसरी सवाई)
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥
कंगण लखालख होत जयांचि धनूसह शोभत युद्धभुमी
शर कनकासह शोणित होती रुधीर तयांवर लाल मणी
करुनि निनाद बटू बनवूनि असूर वधीसि रिपूस रणी
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||८||
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥
तत ततथा थयि ताल घुमोनि पदे थिरकीत तुझीच रमे
कुकुथ गडाद ददीक रमून मनातुनि मृदुंग ताल घुमे
रंगुनि धुधूकुट धुक्कुट मृदुंग धिंधिमिता करितात स्वरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||९||
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥
जयजयकार करीतच विश्व समस्त तुलाच प्रणाम करी
झणझणझीझिमि नाद करोनी भुताधिपतीसि मुदीत करी
नटनटिनायक अर्धनटेश्वर तल्लिन होउनि नृत्य करे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||१०||
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥
अग सुमने सुमनासह सूमन कांति तुझी लखलाति रणी
रजनि तुझी रजनीधव जैसि रजनि प्रभा दिपवीत झणी
भ्रमर जसे तव नेत्र पतीभ्रमरि भ्रमरास जशी भुलवी
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||११||
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥
मुकुल जशी दिसशी अतिकोमल वा सुमनासम भिल्ल दिसे
सुमन जसे दिसते रुधिरासम वर्ण तुझा अरुणासम गे
मदत करीत तुझी शुर येउनि साथ रणांगणि देत तुला
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||१२||
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥
अविरत वाहत मत्त गजा मद उल्हसिता जणु भाससि तू
बलरुप शोभित तीहि जगात कलावति शोभित राजसुते
मधुर सुहास्य अती तव लाघवि सुतामदनासम मोहविते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||१३||
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१४॥
कमलदलासम कोमल कांति विशाल सुभाल असून तुला
तव पदि डोलत नाचत हंस जणू भरुनी अति मोद भला
कमल सुशोभित कुंतल मंडित साथ तयांस बकूळ फुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||१४||
– क्रमशः भाग दुसरा
भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री
९८९०११७७५४
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈