यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
बिना दूधवाले की सुबह
हिंदुस्तान में हमारी सुबह सूरज की धूप की दस्तक के साथ ही पेपर वाले , दूधवाले , सब्जी वाले , कचरे वाले से शुरू होती हैं। पास के मंदिर से आती भजन की आवाजें आती हैं । फिर आती हैं बर्तन वाली , सफाई वाली , कपड़े वाली, खाना बनाने वाली , धोबी , पोस्टमैन , कुरियर, इन दिनों नए चलन में आन लाइन आर्डर के डिलीवरी बाय सहित , कभी रद्दी वाले , या गैस खत्म हो तो सिलेंडर वाला , या अन्य कोई न कोई हाकर को बुलाने की स्वैच्छिक छूट रहती ही है। कभी पिताजी से तो कभी बच्चों से या श्रीमती जी की किटी की फ्रेंड्स, मिलने मिलाने कोई न कोई आते ही रहता है । मतलब डोर बैल बजती ही रहती है।
इसके विपरीत यहां की सुबहे बिना बताए बिना शोर एकदम चुप्पे चाप हो रही हैं । सूरज भी बड़े लिहाज से ही पूरे पाश्चात्य सभ्य अंदाज में हेलो करते लगे ।
दूध के कैन फ्रिज में मौजूद , पेपर पास के स्टोर्स से लाना होगा, गार्बेज कलेक्शन ट्वाईस इन वीक , हाउस हेल्प है नहीं , डाक दरवाजे पर लगे मेल बाक्स में कब आ जाती है पता नहीं लगा । सब कुछ रोबोट सा ,शांत शांत , जिसकी अभी आदत नहीं ।
हां घूमने निकलो तो अपरिचितों से भी स्मित मुस्कान अवश्य मिलती है , जो बड़ी आश्वस्ति देती है, की हम इंसान हैं , रोबोट्स नहीं।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈