डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे…आँखें”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 153 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे… आँखें ☆
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तिनका लगता आँख में, होती है जब पीर।
आँखों के इस दर्द से, बहता है जब नीर।।
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आँखों के इस दर्द का, न है कोई इलाज।
नीर-नीर बहता रहे, दर्द है लाइलाज ।
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आँखें तेरी देखकर, है सुख का आभास।
बहे कभी भी नीर तो, रहूँ सदा मैं पास ।।
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आँखों-आँखों ने कहा, तू है मेरा कौन।
अनुरागी संकेत से, आँखें होती मौन।।
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आँखों ने अब पढ़ लिया, तू है मेरा मीत।
कैसे तुझसे कब मिलूँ, झरता है संगीत।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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