डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे…दीपक ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 155 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे… दीपक ☆
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देखो कैसे साल भर, रहता है उजियार।
दीपों की ये रोशनी, दूर करे अंधियार।।
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तमस घिरा चहुं ओर है, करते सोच विचार।
दीप प्यार का जल गया, करता जग उजियार।।
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देव देहरी पूजते, द्वारे रखते दीप।
घर घर दीपक दे रहा, अपना यही प्रदीप।।
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माटी मुझको ना समझ, मैं दीपक अनमोल।
कीमत मेरी जान लो, यह है मेरा मोल।
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तेरे मेरे प्यार का, इक दीया है नाम।
दीपक तेरे नाम का, रोशन है अभिराम।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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