प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता – ’’मां लक्ष्मी…” …”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #104 ☆ ’’मां लक्ष्मी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
कल्याण दायिनी , धनप्रदे , माँ लक्ष्मी कमलासने
संसार को सुखप्रद बनाया , है तुम्हारे वास ने
निर्धन को भी निर्भय किया ,माँ तुम्ही के प्रकाश ने
जग को दिया आलोक हरदम , तुम्हारे विश्वास ने
चलती नहीं माँ जिंदगी , संसार में धन के बिना
जैसे कि आत्मा अमर होते हुये भी , तन कर बिना
हर एक मन में है तुम्हारी ,कृपा की मधु कामना
आशा लिये कर सक रहा , कठिनाईयों का सामना
संगीत सा आनन्द है , धन की मधुर खनकार में
संसार का व्यवहार सब , केंन्द्रित धन के प्यार में
सबके खुले हैं द्वार स्वागत में , तुम्हें सन्मानने
माँ जगह हमको भी दो ,अपने चरण के पास में
मन सदा करता रहा , मन से तुम्हारी साधना
सजी है पूजा की थाली , करने तेरी आराधना
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈