श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अक्सर देखा है राह में …”।)
ग़ज़ल # 48 – “अक्सर देखा है राह में …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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अरमानों के बाज़ार में दुकान पर बैठी लाचारी,
हम दुखों की हाट में ढूँढते सुखिया राजकुमारी।
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इस ज़िंदगी में ख़ूब बनते हैं रिश्ते निभाने को,
लेनदेन का फलता फूलता कारोबार है रिश्तेदारी।
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जवानी में चढ़ता है ज़िंदगी का नशा खींचकर
बुढ़ापे के पायदान पर उतरती नशे की ख़ुमारी।
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अक्सर देखा है राह में क़ालीन बिछाते उनको,
चलती है अगर कोई चीज़ साथ ☆वो है ख़ुद्दारी।
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चीजों को इकट्ठा कर रोप रहे दुखों की पौध,
बाग़ में रविश-रविश खिलेगी ग़मों की क्यारी।
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दुनिया में आया है तू एक तड़पते दर्द के साथ
तेरे आने के साथ जुड़ी है माँ की पीर दुलारी।
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पी रहा हूँ ग़म के प्याले भरकर हर सुबहो शाम,
हर ज़ाम पर निखरती जाए शक्लो सूरत न्यारी।
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‘आतिश’ गमगीं है तो क्या ग़मगीं दुनिया सारी,
तेरी न मेरी हम सबकी साझा जागीर है प्यारी।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈