श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय लघुकथा – “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे”।)
☆ लघुकथा # 161 ☆ “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
– लोग उनको उच्च क्वालिटी का मंत्री बताते हैं।
-उनके एक खास भक्त ने कालेज की जमीन में कब्जा करके बाउंड्री वॉल बनाना चालू किया तो कालेज के प्रिंसिपल ने आपत्ति जताई।
– भक्त ने प्राचार्य को ट्रांसफर की धमकी दे दी।
– प्रिंसिपल की उचक्के मंत्री के दरबार में पेशी हुई।
– मंत्री ने ऐंठकर कहा- तुमने हमारे अंधमूक प्रिय भक्त के काम में बाधा पहुंचाने की कोशिश की ?
– प्राचार्य ने डरते हुए जबाब दिया -सर वो तो कालेज की जमीन है।
– भक्त ने डांटते हुए कहा- कालेज तो सरकारी है, मंत्री जी की सरकार है और जमीन तुम्हारे बाप की नहीं है, तो आपत्ति करने वाले तुम कौन होते हो ?
– मंत्री ने पूछा -कहां जाना चाहते हो,या सस्पेंड होकर घर बैठना चाहते हो?
– पीए को बुलाया गया और प्राचार्य का नाम नोट कर राजधानी मंत्रालय के सबसे बड़े अधिकारी को फोन लगाकर तुरंत कार्यवाही करने के आदेश मंत्री ने दे दिए।
– प्रिंसिपल हाथ जोड़े बड़बड़ाता रहा, फिर गार्ड ने घसीटते हुए बंगले के बाहर कर दिया।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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