डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से \प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 157 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
कलकल बहती जा रही, पीर सहे चुपचाप।
नदी सुनाती है हमें, गाथा अपनी आप।।
पथरीले राह चलती, है हमको अहसास।
सभ्यता की हूं जननी, पढ़ लो तुम इतिहास।।
पर्वतों से निकल रही, गंग जमुन की धार।
निर्मल नदिया बह रही, मिलती सागर पार।।
घाट -घाट ढूंढ रही, कहां छुपे घन श्याम।
यमुना मिलने जा रही, वो मोहन के धाम।।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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