सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक भावुक एवं मार्मिक लघुकथा “निःशब्द ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 5 ☆
☆ निःशब्द ☆
दामोदर एक साधारण व्यक्ति। कद काठी सामान्य । थुलथला बदन और पान के शौकीन। मुंह से चारों तरफ से पान गिरना। गरीबी के कारण बुढापा जल्दी आ गया था। 50-52 साल के परन्तु लगते 70 साल के। प्लंबर का काम, घर घर जाकर काम करना जो उन्हें बुला ले। बेटे के नालायक निकल जाने के कारण दामोदर टूट चुके थे। पत्नी और बिना ब्याही बिटिया घर पर। रोजी से जो कुछ भी मिलता अपनी पत्नी को पूरा का पूरा ले जाकर दे देना।
अपने लिए कभी किसी से मांगने नहीं जाते। खुशी से दे दे तो गदगद हो जाना और यदि मेहनताना कम मिले तो कुछ कहना ही नहीं बस चलते बनना। उनके इस व्यवहार के कारण, सिविल एरिया पर नल सुधारना, पाईप बदलना छोटे-छोटे काम के लिये सिर्फ़ दामोदर का ही नाम होता था। सब काम बहुत मन लगाकर करना।
लगभग 3-4 महिने से दामोदर कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे थे। सभी एक दूसरे से पूछते पर कहीं गांव में रहने के कारण उनका पता कोई नहीं जान रहा था। सिर्फ एक मोबाइल नंबर दे रखा था उसने।
अचानक एक दिन किचन का नल खराब हो जाने से, उस नम्बर पर काल करने से उधर से आवाज आई…. “कौन साहब बोल रहे हैं?”
“दामोदर जी घर पर है क्या?…..” बात शुरू करना चाहते थे। परन्तु उनकी पत्नी इतना ही बोल सकी, “वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। एक माह पहले उनका देहांत हो गया।”
फोन पर “हैलो, हैलो….. ” की आवाज आती रही। पर उत्तर पर ‘निःशब्द ‘ कुछ बोल न सके। लगा शायद फोन आज डेड हो गया है।
सब कुछ दामोदर के लिए निःशब्द हो गया।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश