श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है बाल मन की कविता “हो जाऊँ मैं शीघ्र बड़ा…”)
☆ तन्मय साहित्य # 158 ☆
☆ बाल मन की कविता – हो जाऊँ मैं शीघ्र बड़ा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत एक बाल मन की कविता)
आता है मन में विचार
मैं भी हो जाऊँ शीघ्र बड़ा
नहीं किसी की ओर निहारूँ
अपने पैरों रहूँ खड़ा।
चॉकलेट टॉफी के लिए
कहाँ तक हम तरसेंगे
होंगे बड़े करेंगे मेहनत
फिर पैसे बरसेंगे,
थोड़ी कंजूसी करके
भर लूँगा पूरा एक घड़ा।
आता है मन में विचार
मैं भी हो जाऊँ शीघ्र बड़ा….
इक दिन मैं बाजार गया
अंगूर सेंवफल लेने
बच्चा, हमें जान कर
हेर-फेर की फल वाले ने,
घर आकर देखा तो
एक सेवफल, पूरा मिला सड़ा।
आता है मन में विचार
मैं भी हो जाऊँ शीघ्र बड़ा।।
टोका टाकी रोज-रोज मैं
कब तक और सहूँगा
मम्मी पापा के अधीन
मैं कब तक और रहूँगा,
यही बात पूछी पापा से
चाँटा प्यार से मुझे पड़ा।
आता है मन में विचार
मैं भी हो जाऊँ शीघ्र बड़ा।।
फिर मम्मी ने समझाया
यह बाल उम्र ही अच्छी है
होंगे जितने बड़े, बढ़ेगी
उतनी माथापच्ची है,
बात समझ में आई सच में
बचपन हीरो हार जड़ा।
आता है मन में विचार
मैं भी हो जाऊं शीघ्र बड़ा।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈