श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं…”।)
ग़ज़ल # 52 – “आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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कुछ लोग तो सत्तर में भी जवां रहते हैं,
अपनी मस्ती में हर वक़्त रवां रहते हैं।
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जिनको दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं है,
आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं।
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देखना धोखे में उनके कहीं आ न जाना तुम,
वो जो मासूम से लोग आस्तीनों में रहते हैं।
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किसी पे कोई भरोसा ज़रा नहीं करता यहाँ,
यह कैसा समय है जिसमें हम लोग रहते हैं।
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किसी से पूछना ज़रूरी तो नहीं है कुछ भी,
दिल के हालात ‘आतिश’ में अयाँ रहते हैं।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈