श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#गरीबी की रेखा…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 107 ☆

☆ # गरीबी की रेखा… # ☆ 

एक पत्रकार ने

गरीबी रेखा से नीचे

रहने वाले व्यक्ति से पूछा,

आप लोगों की तो

मौज ही मौज है

होली या दिवाली रोज है

वो गरीब व्यक्ति

उसका मुंह ताकने लगा

उसकी आंखों में झांकने लगा

और पूछा कैसे ?

पत्रकार बोला ऐसे –

आपको मुफ्त में –

चावल

दाल

चना

तेल

शक्कर (गुड़)

सहायता राशि

मिल रही है

इसलिए आप की शक्ल

पके हुए टमाटर की तरह

लाल-लाल सी खिल रही है

सरकार जबरदस्ती

चिल्ला-चिल्ला कर

गरीबी की रेखा को पीट रही हैं

असलियत में तो

गरीबी कब से मिट गई है

 

वो गरीब व्यक्ति

हतप्रभ होकर

पत्रकार से बोला –

साहेब कभी हमारी

गरीब बस्ती मे आइए

साथ में कैमरा भी लाइए

देखिए हम कैसा

कीड़ों सा नारकीय जीवन जीते हैं

कितना गन्दा पानी पीते हैं

कहने को ऊपर छत

नीचे गंदी नाली है

यह जिंदगी तो

लगती एक गाली है

असाध्य बीमारियों ने

यहां डाला डेरा है

क्या इससे पहले कभी आपने

लगाया यहाँ फेरा है?

आप हम गरीबों का

मज़ाक मत उड़ाइए

कल जरा अपने चैनल पर

इस स्टोरी को प्राइम टाइम में दिखाइए

गर आप में दम है तो

कल के अखबार की

हेडलाइन बनाइए

उसके बाद जीवन संघर्ष के लिए

आप तैयार हो जाइए

हमारे जख्मों को कुरेदकर

हरा मत कीजिए

धीरे धीरे भर रहे है

इन्हें भरने दीजिए

साहेब,

हम गरीब लोग

इसकी शिकायत

किसी से नहीं करते हैं

गरीबी में जन्म लेते हैं

गरीबी में जीते हैं और

गरीबी में मरते हैं  /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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