श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “प्रोफाईल फोटो”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 144 ☆
लघुकथा 🎞️ प्रोफाईल फोटो 🖥️📞
जीवा मोबाईल, फेसबुक, व्हाट्सएप, पर तरह-तरह की सुंदर तस्वीरें डाला करती थी। मम्मी – पापा भी बहुत अच्छी बड़ी सोसाइटी में रहा करते थे। इसलिए जीवा को भी सब कुछ खुली आजादी थी। शादी की बात चलने लगी। लड़के वाले देखने आते परंतु कभी वे जीवा को पसंद नहीं करते और कभी कोई जीवा को पसंद नहीं आता।
धीरे-धीरे उम्र बढ़ती चली जा रही थी। छोटा भाई भी कहने लगा…. कब तक इसे घर पर रखना पड़ेगा। मम्मी-पापा कहते हैं… इस घर पर उसका भी अधिकार है। बस सब मामला यहीं पर शांत हो जाता।
छोटे भाई का एक खास दोस्त आज अपने भैया हर्ष के साथ आया। बहुत ही साधारण परिवार का था। जीवा को हर्ष अच्छा लगा और उसके जाने के बाद उसकी प्रोफाइल फोटो देखकर उसके बारे में पता लगाया।
हर्ष एक प्राइवेट कंपनी पर काम करता था। काफी विचार कर जीवा ने उसे फोन पर कहा…. क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगे। हर्ष सुनता रहा। भाई भी परेशान हो गया। इतने बड़े-बड़े घर से रिश्ते आए और जीवा ने किसी को पसंद नहीं किया और कुछ खास नहीं है हर्ष अब इसे ये पसंद आ रहा।
भाई ने जीवा की बात संभाली और उसे कहा…. जीवा मजाक कर रही थी भैया। परंतु जीवा अपनी बात पर अड़ी रही। और एक दिन जीवा अचानक हर्ष के ऑफिस पहुंच गयी। उसका यह रूप देखकर वह दंग रह गया। साधारण कपड़ों में जीवा बहुत सुन्दर लग रही थी, न गहरी लाली, न आँखें काली कजरारी।
जीवा ने हर्ष को अलग अकेले में ले जाकर कहा…. हर्ष मुझे आपके जैसा ही जीवन साथी चाहिए। आप मेरी प्रोफाइल तस्वीर पर विचार मत करना। चाहे तो आप कुछ भी शर्त रख लो मैं आपके साथ बिल्कुल आपके जैसा ही जीवन जीने के लिए तैयार हूँ। मैं आज की बडी़ सोसाइटी के बीच रहने के कारण यह सब फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपलोड करती थी। तंग आ गई हूँ मैं इस रुप से। प्लीज मुझे अपना लो और शादी के लिए हां कह दो।
यह कह कर वह रोते हुए हर्ष की बाँहों में समा गई। हर्ष सोच नहीं पा रहा था आज की इस भागती दौड़ती जिंदगी में और इस हाई प्रोफाइल सोसायटी पर उसकी अपनी सादी ब्लैक एंड वाइट तस्वीर कैसे छा गयी।
वह जीवा को अपलक देख रहा था।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈