श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है पुरस्कृत पुस्तक “चाबी वाला भूत” की शीर्ष बाल कथा  “चप्पल के दिन फिरे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 129 ☆

☆ बाल कथा – “चप्पल के दिन फिरे” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

पीली चप्पल ने कहा, “बहुत दिनों से भंडार कक्ष में पड़े-पड़े दम घुट रहा था। कम से कम अब तो हम कार में घूम रहे हैं।”

“हां सही कहती हो,” नीली बोली, श्रेयांश बाबा ने हमें कुछ ही दिन पहना था और बाद में भंडार कक्ष में डाल दिया था।”

“मगर हम एक कहां-कहां घूम कर आ गए हैं? कोई बता सकता है?” भूरी कब से चुपचाप थी। तभी श्रेयांश की मम्मी की आवाज आई, ” श्रेयांश जल्दी से गाड़ी में बैठो। हम वापस चलते हैं।”

यह सुनकर सभी चप्पलों का ध्यान उधर चला गया।  श्रेयांश, उसकी मम्मी और पापा कार में बैठ चुके थे। कहां चल दी। तभी उसकी मम्मी ने पूछा, “ताजमहल कैसा लगा है श्रेयांश?”

जैसे ही श्रेयांश ने कहा, “बहुत बढ़िया! शाहजहां के सपनों की तरह,” वैसे ही उसके पापा बोले, “अच्छा! यानी तुम्हें पता है ताजमहल शाहजहां ने बनाया है।”

“हां पापाजी,” श्रेयांश ने कहा, “मुझे आगरा के ताजमहल पर प्रोजेक्ट बनाना था। इसलिए ताजमहल की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थीं।”

तभी उनकी गाड़ी का ब्रेक लगा। कार जाम में फस गई थी। उनकी बातें रुक गई।

“वाह!” तभी नीली चप्पल ने श्रेयांश की बातें सुनकर कहा, ” हमें भी ताजमहल की जानकारी मिल जाएगी।”

“हां यह बात तो ठीक है,” तभी लाली बोली, “मगर हमें कार में क्यों लाया गया है? कोई बता सकता है।”

“यह तो हमें भी नहीं मालूम है,” कहते चुपचाप बैठी नारंगी चप्पल बोली, ” श्रेयांश की मम्मी ने भी है पूछा था तब उसने कहा था- बाद में बताऊंगा मम्मी जी।”

तभी जाम खुल चुका था। कार चल दी। तभी पापा ने पूछा, “अब बताओ, ताजमहल के बारे में क्या जानते हो?”

“पापाजी जैसा हमने देखा है आगरा का ताजमहल यमुना नदी के दक्षिणी तट पर बना हुआ है। यह संगमरमर के पत्थर से बना मुगल वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है।”

“हां, यह बात तो ठीक है,” पापा ने कहा तो श्रेयांश बोला, “मुगल सम्राट शाहजहां ने सन 1628 से 1658 तक शासन किया था। इसी शासन के दौरान 1632 में ताजमहल बनाने का काम शुरू हुआ था।”

” अच्छा!” मम्मी ने कहा।

“हां मम्मीजी,” श्रेयांश ने कहना जारी रखा,”शाहजहां  ने अपनी बेगम मुमताज महल के लिए आगरे का ताजमहल बनवाया था। जिसका निर्माण 1642 में पुर्ण हुआ था।” 

“यानी ताजमहल को बनवाने में 10 वर्ष लगे थे,” पापा बोले तो श्रेयांश ने कहा, “हां पापाजी, इस विश्व प्रसिद्ध इमारत को 1983 में यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूची में शामिल किया था।”

“सही कहा बेटा,” मम्मी ने कहा, “यह समृद्ध भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर है।”

“आप ठीक कहती है मम्मीजी,” श्रेयांश ने अपनी बात को कहना जारी रखा,” इस विरासत को 2007 में विश्व के सात अजूबों में पहला स्थान मिला था।”

“कब? यह तो हमें पता नहीं है,” पापा जी ने पूछा।

“सन 2000 से 2007 तक ताजमहल विश्व विरासत में नंबर वन पर बना रहा,” श्रेयांश ने कहा। तभी उसकी निगाह कांच के बाहर गई।

“पापाजी गाड़ी रोकना जरा!” उसने कार के बाहर इशारा करके कहा तो मम्मी ने पूछा, “क्यों भाई? यहां क्या काम है?”

“उस लड़की को देखो,” करते हुए श्रेयांश ने कार का दरवाजा खोल दिया।

सामने सड़क पर एक लड़की खड़ी थी। उसके कपड़े गंदे थे। हाथ में एक बच्चा उठा रखा था। उसके पैर में चप्पल नहीं थी। वह तपती दुपहरी में सड़क पर नंगे पैर खड़ी थी।

श्रेयांश ने सीट से हरी चप्पल उठाई। उस लड़की की और हाथ बढ़ा दिया, “यह तुम्हारे लिए!”

“मेरे लिए!” कहते हुए उसने चुपचाप हाथ बढ़ा दिया। उसकी आंखों में चमक आ गई थ श्रेयांश में ने उसे चप्पल दे दी। पापा को इशारा किया। उन्होंने कार आगे बढ़ा दी।

“ओह! इसीलिए तुम पुरानी चपले लेकर आए थे। मैंने पूछा तो कह दिया-कुछ काम करूंगा। यह तो बहुत अच्छी काम किया है।” मम्मी खुश होकर बोली।

“हां मम्मीजी, उस लड़की का तपती दुपहरी में पैर जल रहे थे। उसे चप्पल की ज्यादा जरूरत थी। मेरी चप्पल भंडार कक्ष में पड़ी-पड़ी बेकार हो रही थी। इसलिए।”

“शाबाश बेटा! यह बहुत अच्छा काम किया है,” कहते हुए पापाजी ने फिर गाड़ी रोक दी।

तभी कब से चुपचाप बैठी नीली चप्पल बोली, “इसीलिए श्रेयांश हमें भंडार का खेल निकाल कर लाया है। हमारा भी सहयोग होगा। हम भी बाहर की दुनिया की सैर कर सकेंगे।”

“हां नीली तुम सही कह रही हो,” पीली चप्पल ने कहा, “कब से हम भंडार कक्ष में पड़े-पड़े बोर हो रही थी। हमारा भी कब उपयोग होगा?”

तभी श्रेयांश ने भूरी, लाल और नारंगी को उठाकर एक-एक लड़के को दे दिया। पीली को उठाया साथ खेले रही लड़की को बुलाकर उसे भी दे दिया। सभी लड़के-लड़कियां चप्पल पाकर खुश हो गए।

अब कार में केवल नीली चप्पल बची थी। उसे देखकर श्रेयांश बोला, “मम्मीजी इसे किसी को नहीं दूंगा। क्यों यह अच्छी चप्पल है। इसका फैशन वापस आ गया है। इसे तो मैं ही पहनूंगा,” करते हुए श्रेयांश ने पापाजी को कहा, “आप सीधे कार घर ले चलिए।” 

“ठीक है बेटा।”

“चलो इन चप्पलों के भी दिन फिरें।” मम्मी ने मुस्कुरा कर कहा तो श्रेयांश को कुछ समझ में नहीं आया कि मम्मी क्या कह रही है? इसलिए उसने पूछा, “आप क्या कह रही है मम्मीजी? चप्पलों के दिन भी फिरें।” 

“हां, इनके भी अच्छे दिन आए है।” मम्मी जी ने कहा तो श्रेयांश मुस्कुरा दिया, “हां मम्मीजी।” 

नीली चप्पल अकेली हो गई थी इसलिए वह किसी से बोल नहीं पा रही थी। इसलिए चुपचाप हो गई।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

05-04-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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