पुस्तक चर्चा
अर्घ, कविता संग्रह
दामिनी खरे
आवरण.. यामिनी खरे
प्रकाशक … कृषक जगत, भोपाल
विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने श्रीमती दामिनी खरे जी की कृति अर्घ उपलब्ध कराई।सच में बहुत अच्छा लगा पढ़कर।आजकल मैं अक्सर सोचती हूं कि अब सब खत्म हुआ, पढ़ना थोड़ा याने समाचार पत्र तक ही रखूं। वह भी अब और कोई घर में पढ़ता नहीं और मुझे उसके बिना सुप्रभात सा लगता नहीं। मुंबईया बोली में कहूं तो सब खल्लास।
पर दामिनी जी के काव्य संग्रह अर्घ ने फिर एक बार कानों में मानो मिस्री घोली नहीं अभी कहां ?जब तक सांस तब तक आस। नहीं ये शायद उतना सही नहीं।मेरी सासू मां एक मुहावरा कहती थीं उस समय उतना उचित नहीं लगता था पर शायद उससे अधिक यहां कुछ नहीं लग रहा।जब तक जीना तब तक सीना।अब यदि आप में से कोई कुछ और जोड़ें तो वह स्वतंत्र है।
मुझे लगा कि दामिनी जी जब नयी कविताएं लिखकर संग्रह प्रकाशित कर सकती है तो प्रेरणा स्वरूप मैं केवल सोचूं नहीं उनके उत्साह वर्धन में उस पर लिखूं भी। जैसा कि मैंने अर्घ नाम पढ़ कर उसे पहले अर्थ शास्त्र से सम्बंधित सोचा, पर केवल अनुक्रमणिका देखकर ही समझ आ गया कि नहीं ये कवियत्री महोदया के पूरे जीवन की संचित रस से भरी गागर है। एक के बाद एक क्या नहीं है इसमें।जैसा कि उन्होंने आत्म कथ्य में कहा कि बीच के अंतराल में लेखन छूट गया पर पढ़ा बहुत।बस यही दिख गया। प्रसाद पंत निराला सबकी मनोहर झांकी और महादेवी जी की तो पूर्ण अनुकृति। बीन भी हूं मैं तुम्हारी रागनी हूं, तो मानो पूरी तरह उतर कर आ गयी।
सरस्वती वंदना में पूरी तरह निराला जी का वीणा वादिनी वर दे का प्रबल प्रभाव दिखता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का भाव बने लेखनी निडर सच्चाई का बल दे में स्पष्ट दिखाई देता है।
अपने परिवार में मां पिताजी भाई छोटी बहना पर बाल हृदय के सहज भावनाओं को बड़े वत्सल भाव तो पति के लिए आदर मिश्रित प्रेम को अभिव्यक्त करने में वे बहुत सफल रहीं हैं। मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि आजकल यह कम होता दिखाई दे रहा है। इस के बाद आप देखें कि आधुनिक जितने विषय है उन पर बड़ी सार्थक कविताये रची हैं। बेटी पर तो अपने समय से लेकर आज तक की सारी सम सामयिक समस्याएं सकारात्मक भाव से प्रस्तुत की गई है। श्रंगार से लेकर अधिकाधिक रसों पर इतनी हृदयग्राही शैली में रची हैं कि बस इन सुरुचिपूर्ण कविताओ को पढ़ते रहो, पढ़ते रहो। जिस किसी के पुस्तक हाथ आये, वह अवश्य पढ़े। आज की पीढ़ी पढ़ने में कुछ कोताही बरतती है पर मुझे ऐसा लगता है कि जिस सहजता की ये कविताये है मिलने पर वे भी अवश्य पढ़ेंगे। कठिन बातों को सरल बनाना दामिनी जी की बहुत बड़ी विशेषता है।
अंत में फिर कहना चाहूंगी कि हृदय से चढ़ाये गये इन काव्य कुसुमों को पूजा में चढ़ाते अंजली लिए जल पुष्प रूपी अर्घ जैसे भाव से गृहण करें। अत्यधिक बधाई की पात्र हैं दामिनी जी और मुझे इन कविताओं पर लिखने को प्रेरित करने हेतु श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव जी का हृदय से आभार।
ई-अभिव्यक्ति ने श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी द्वारा श्रीमती दामिनी खरे जी के काव्य संग्रह अर्घ की समीक्षा को प्रकाशित किया था। आप उसे निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं 👇🏻
☆ “अर्घ, कविता संग्रह” – सुश्री दामिनी खरे ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
चर्चाकार… श्रीमती नीलम भटनागर
सेवा निवृत व्याख्याता हिंदी, जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Awesome Writing by Neelam ji,so inspiring and motivating for Damini khare ji👌👌👌