श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 69 – मनोज के दोहे  ☆

1 फागुन

फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।

छोड़ चला संसार को, परम हमारा  मित्र।।

2 फाग

उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।

प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।

3 पलास

रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।

बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।

4 वन

वन में झरे पलास जब, लगें गिरे अंगार।

आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।

5 जोगी

धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।

तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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