श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 69 – मनोज के दोहे ☆
☆
1 फागुन
फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।
छोड़ चला संसार को, परम हमारा मित्र।।
2 फाग
उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।
प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।
3 पलास
रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।
बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।
4 वन
वन में झरे पलास जब, लगें गिरे अंगार।
आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।
5 जोगी
धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।
तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।
☆
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002
मो 94258 62550
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈