श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय एवं स्त्री विमर्श पर आधारित एक हृदयस्पर्शी एवं भावप्रवण लघुकथा “वेलेंटाइन तोहफा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 151 ☆
🌹 लघुकथा 🌹 वेलेंटाइन डे विशेष – वेलेंटाइन तोहफा ❤️
मालती इस दिन को कैसे भूल सकती है। आज वह अपना 25वां जन्मदिन मना रही है। आज ही के दिन किसी ने गुलाब से भरी टोकरी में मालती को लिटा कर अनाथ आश्रम के द्वार पर रख कर चला गया था।
धीरे-धीरे मालती बड़ी हुई। अपने रूप गुण और सरल स्वभाव के कारण सभी की आंखों का तारा बन चुकी थी। अनाथ आश्रम में कई कर्मचारी काम करते थे। सभी मालती को बहुत पसंद करते थे क्योंकि वह बाकी अन्य बच्चों से बिल्कुल अलग थी।
दिन बीतते गए। मालती पढ़ने लिखने में भी बहुत होशियार थी। वहां के एक कर्मचारी को वह बिटिया भा गई थी क्योंकि उसका अपना बेटा भी बहुत ही शांत स्वभाव और होनहार था। पवन मालती के सपने देख रहा था। जब भी उसका आना होता, उसकी सुंदरता उसे आकर्षित करती थी।
उसकी इच्छा को समझ पापा ने कहा… पहले थोड़ा पढ़ लिख जाओ, उसे भी पढ़ने दो और फिर उसकी इच्छा का मान रखो।
मालती इन सब बातों से अनभिज्ञ थी। वहीं पर उसने पढ़ाई कर प्राइवेट कंपनी में जॉब करना शुरू कर दिया। आज जब वह अपने जन्मदिन की खुशियां मना रही थी। दुल्हन की तरह सजी हुई थी। उसने देखा आश्रम गुलाब के फूलों से सजा हुआ है और पास में ही बहुत बड़ी डलिया फूलों से भरी रखी है।
उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वह अपने जन्मदिन को लेकर मंत्रमुग्ध हुए जा रही थी। उसी समय वह कर्मचारी अपने बेटे और पत्नी परिवार के साथ आया। शहनाई की धुन बजने लगी। मालती ने सोचा हैप्पी बर्थडे की जगह शहनाई क्यों बजाई जा रही है। तभी सुपरवाइजर मैडम ने मालती को हाथों से पकड़ लिया और डलिया पर बिठा दिया। कर्मचारी और उसकी पत्नी और उनके बेटे पवन को देखकर मालती सारा मामला समझ चुकी थी और शर्म से लाल हो गई।
मैडम ने कहा… आज वैलेंटाइन डे पर तुम फूलों के साथ आई थी आज तुम्हें फूलों सहित विदा कर रहे हैं अपने नए जीवन और नए घर पर बड़े प्यार से रहना। यही वैलेंटाइन उपहार है। सभी की आंखें खुशी से नम हो रही थी। आज मालती को अपना घर मिल गया।
कुछ लोग उसे उठा कर चलने लगे मैडम ने कहा… ये तुम्हारा अपना घर है। आते जाते रहना। उसका हाथ पवन के हाथों में देते हुए बोली… आज से इसका ख्याल रखना। सुपरवाइजर मैडम की आंखों में आंसू थे। मालती दोनों अंजलि से फूलों की पंखुड़ियां उछाल रही थी। फूलों की डलिया में बैठ मालती धीरे-धीरे विदा हो रही थी।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈