डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत “धरा ने ओढ़ी है…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 169 – साहित्य निकुंज ☆
☆ गीत – धरा ने ओढ़ी है… ☆
धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया ,
हर्षित हुआ मोरा मन तो सांवरिया
बौराई है आज देखो अमवा की डाली ।
गेहूं की झूम रही खेतों में बाली।
लहलहा उठी अब तो मोरी डगरिया
धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया
हर्षित हुआ मोरा मन तो सांवरिया।।
चहक रहे विहाग आज भाव से भरे
गा रही बयार आज सुगंध को धरे
झूम उठी अब तो मोरी नगरिया
धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया
झूम झूम के गीत गा रहा है गगन
खिल रही है प्यार से उषा की किरण
बसंती रंग में भीगी मोरी चदरिया
धरा ने ओढ़ी है धानी चुनरिया
हर्षित हुआ मोरा मन तो सांवरिया।।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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