श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
(प्रस्तुत है श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी की मानवीय संवेदनाओं पर आधारित लघुकथा ‘उदासी’। हम भविष्य में श्री अरोड़ा जी से उनके चुनिन्दा साहित्य की अपेक्षा कराते हैं।)
☆ भूल -भुलैया☆
” क्या हुआ? आज फिर मुहं लटकाए बैठा है. कल तो जिंदगी के सुहानेपन के गीत गुनगुना रहा था.”
” हाँ गुनगुना रहा था क्योंकि कल सुहावनापन था. ”
” मौसम तो आज भी वैसा ही है जैसा कल था.”
” पर आज वो तो नहीं है न! ”
” क्या कल वो थी? ”
” भले ही नहीं थी पर उसने फोन पर कहा था कि वो है.”
” ऐसा तो उसने बहुत बार कहा है? ”
” कल दिन भर मेरे सामने थी पर बात दूसरों से करती रही.”
” यह तो तुम दोनों के बीच बहुत दिनों से होता रहा है तो फिर अब मुहं लटकाने का क्या मतलब?”
” अब मैंने भी तय कर लिया है कि न तो उसका फोन सुनुँगा और न ही उसे फोन करूंगा.”
” तो फिर अब रोना कैसा. छूट्टी खराब मत कर. चल उठ, निकल. कहीं चल कर मस्ती करते हैं.”
” हाँ यही ठीक है, यही करेंगें.”
” वह बिस्तर से निकलने को हो आया कि तभी फोन की ट्यून बज उठी. उसने स्क्रीन पर नजर डाली. ट्यून की लहरों के बीच चमक रहा था “नम्रता कॉलिंग.”
” मित्र ने स्विच आफ करने की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि उसने रोक दिया और कुछ देर तक टनटनाती ट्यून को देखने के बाद मोबाईल को कान से लगा कर आत्मीयता से बोला,” हेलो नमु. गुड मॉर्निंग! कैसी हो.”
“…………………………………………..!”
मित्र ने पाया कि यह तो फिर से उसी भूल -भुलैया में खो गया है. इसके पास रुकने का कोई फायदा नहीं है.
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
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