डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “अबला नहीं सबला ”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 7 ☆
☆ अबला नहीं सबला ☆
मैं अबला नहीं
सबला हूँ
पर्वतों से टकराने
सागर की
गहराइयों को मापने
आकाश की
बुलंदियों को छूने
चक्रव्यूह को भेदने
शत्रुओं से लोहा मनवाने
सपनों को हक़ीक़त में
बदलने का
माद्दा रखती हूँ मैं।
क्योंकि, पहचान चुकी हूँ
मैं अंतर्मन में छिपी
आलौकिक शक्तियों को
और वाकिफ़ हूँ मैं
जीवन में आने वाले
तूफ़ानों से
जान चुकी हूँ मैं
सशक्त, सक्षम, समर्थ हूं
अदम्य साहस है मुझमें
रेतीली, कंटीली
पथरीली राहों पर
अकेले बढ़ सकती हूँ मैं।
अब मुझे मत समझना
अबला ‘औ ‘पराश्रिता
जानती हूं मैं
अपनी अस्मिता की
रक्षा करना
समानाधिकार
न मिलने पर
उन्हें छीनने का
दम भरना
सो! अब मुझे कमज़ोर
समझने की भूल
कदापि मत करना।
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com