श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे
☆ कविता ☆ “शिवालय” ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆
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ओ दूर है शिवालय, शिवका मुझे सहारा
शिव के बिना यहा तो, कोई मुझे न प्यारा
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जा ना सके वहा तो, दिल में उसे बिठाकर
हर साँस को बनालो, शिव नाम एक नारा
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ये जान धूल मिट्टी, आकार तू बनाया
हर एक आदमी को, तूने किया सितारा
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कैलाश घर तुम्हारा, दिल मे किया बसेरा
जाने कहा कहा पर, संसार है तुम्हारा
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कश्ती तुफान में थी, मैंने तुम्हे पुकारा
आँखे खुली खुली थी, था सामने किनारा
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भगवान दान माँगे, मैने नही सुना था
सजदा किया हमेशा, सौदा किया न यारा
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© अशोक श्रीपाद भांबुरे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈