प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक कविता – “प्रल्हाद के विश्वास का संसार है होली…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #121 ☆ कविता – “प्रल्हाद के विश्वास का संसार है होली…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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प्रल्हाद के विश्वास का संसार है होली।
भारत का भावना भरा त्यौहार है होली ।
संस्कृति ने हमें जो दिया उपहार है होली ।
हर मन में जो पलता है वही प्यार है होली ||1||
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मिट जाते जहाँ दाग सब मन के मलाल के
उड़ते हैं जहाँ घिर नये बादल गुलाल के।
खुश होते जहाँ लोग सब भारत विशाल के
वह पर्व प्यार का मधुर आधार है होली ||2||
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इसके गुलाल रंग में अनुपम फुहार है।
मनमोहिनी सुगन्ध का मादक खुमार है।
हर पल में छुपे प्यार की धीमी पुकार है।
आपस में हेल-मेल का उपचार है होली ||3||
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धुल जाते जहाँ मैल सभी रस की धार में।
मिट जाते सभी भेदभाव प्रेम-प्यार में।
दुनियाँ जहाँ दिखती नई आई बहार में।
अनुराग भरा अनोखा त्यौहार है होली ॥4॥
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हम भारतीयों का सुखद संस्कार है होली ॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈