श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – “यकीं वादों पर हम खूब करने लगे…”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 158 ☆
☆ एक पूर्णिका – “यकीं वादों पर हम खूब करने लगे…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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याद आपकी आती रही रात भर
दिल मेरा गुदगुदाती रही रात भर
सपनों में तेरे इस कदर खो गए
चाँदनी मुस्कराती रही रात भर
इश्क में तेरे बदनाम हम हो गए
दूरियां हमें डरातीं रहीं रात भर
यकीं वादों पर हम खूब करने लगे
आँख मेरी डबडबाती रही रात भर
हवा भी अब प्रेम गीत गाने लगी
छूकर हमें लुभाती रही रात भर
खुद की बेबसी पर चुप हम हो गये
दुनिया हमें हँसाती रही रात भर
उनके कदमों की आहट जब भी सुनी
नींद “संतोष” न आती रही रात भर
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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