श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़ुशबू से महसूस होती रहती हो…”)

? ग़ज़ल # 66 – “ख़ुशबू से महसूस होती रहती हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मैं बन गया प्रिया का साजन यहाँ,

खूबसूरत मिल गई तू जोगन यहाँ।

उम्मीद का मौसम ख़ुशनुमा होगा,

फिर झूम के बरसेगा सावन यहाँ।

ख़ुशबू से महसूस होती रहती हो,

जिस्म उधर है पर धड़कन यहाँ।

चंपा चमेली गुलमोहर खिल उठेंगे,

महक उठेगा अब घर आँगन यहाँ।

आज़ भी जिन्दा है प्रीत की रीत,

मिलने के होते हैं कई जतन यहाँ।

आतिश मिटी ज़िंदगी की थकन,

मिल गया प्रेयसी आलिंगन यहाँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_printPrint
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments