डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – आकुल है मन…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 130 – आकुल है मन…
आकुल है मन
तुमसे कुछ कहने को
आवारा मेघदूत कहना मत रुकने को।
दिखती है भीड़ भाड़
कुछ नहीं नया
चेहरे पर एक नाम तैरता गया।
सोचा मैंने अभी और कितना है सहने को।
कभी कभी लगता है।
छूट कुछ गया
और कभी लगता है
टूट कुछ गया।
शायद ये साँसे हैं, और और दहने को।
बहुत याद करता हूँ
कहना है क्या?
भूल नहीं पाता हूँ, घटित वाकया।
शब्दों के शिलाखण्ड आकुल है बहने को।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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