डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “भावना के मुक्तक…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 173 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के मुक्तक … ☆
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बजी है राग की रागिनी,बजे दिल तो इकतारा है।
तुझे लगता जो प्यारा है,वहीं मेरा भी दुलारा है।
नाचे दुनिया धुन पर खामोशी है अब भी मन पर,
यही मैं कहता आया हूं तेरा प्यार हमारा है।
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तेरी खामोशी जो कहती उससे मैं तो समझता हूं।
तेरे दिल में मेरा दिल है यही मैं तुझ से कहता हूं।
तू कहना जो मुझे चाहे तेरी खामोशी कह देती।
मेरी आंखों में देखो तो तेरा चेहरा ही दिखता है।।
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गांव के थे हसीन लम्हे जिन्हें पीछे में छोड़ आया।
किया है रुख शहर का तो मैं रिश्तों को तोड़ आया।
असर दिल पर ये होता है याद आती है गांव की
मुझे लगता है अब पीछे मैं जाने क्या छोड़ आया।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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